
जल शक्ति मंत्रालय ने राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ के पूछे गए प्रश्न पर दिया जवाब
जयपुर, 05 अगस्त 2025। राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ द्वारा राज्यसभा में पूछे गए प्रश्न के जवाब में भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया है कि ‘यमुना जल पाइप लाइन परियोजना’ को पुनर्जीवित करने की दिशा में ठोस और तेजी से कार्य प्रारंभ कर दिए गए हैं। यह परियोजना राजस्थान के जल-संकटग्रस्त जिलों — चूरू, सीकर, झुंझुनूं — सहित कई क्षेत्रों को राहत देने जा रही है, इससे न केवल जल संकट कम होगा, बल्कि पूरे क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक विकास की एक नई धारा बहेगी।
जल शक्ति राज्य मंत्री राज भूषण चौधरी ने राज्यसभा में जानकारी दी कि राजस्थान और हरियाणा सरकारों के बीच इस परियोजना हेतु समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर हो चुके हैं। इसके तहत हथिनीकुंड बैराज से भूमिगत पाइपलाइन के माध्यम से यमुना जल राजस्थान के जिलों तक स्थानांतरित किया जाएगा। यह प्रस्तावित है कि जुलाई से अक्टूबर के बीच 577 मिलियन क्यूबिक मीटर (MCM) जल इन क्षेत्रों तक पहुँचाया जाएगा।
उन्होंने बताया कि परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए राजस्थान में एक परामर्शदाता की नियुक्ति की जा चुकी है और दोनों राज्यों द्वारा संयुक्त कार्यबल का गठन भी कर लिया गया है, ताकि परियोजना का क्रियान्वयन समयबद्ध और गुणवत्तायुक्त रूप से सुनिश्चित किया जा सके।
सांसद मदन राठौड़ ने इस ऐतिहासिक प्रगति को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और प्रदेश की डबल इंजन सरकार की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनकल्याणकारी दृष्टिकोण का प्रत्यक्ष परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि “यह परियोजना प्रधानमंत्री मोदी जी के ‘सबका साथ, सबका विकास’ के विजन का सशक्त उदाहरण है। राजस्थान की जनता के लिए यह एक नई उम्मीद की किरण है। यह सिर्फ एक पाइपलाइन नहीं, बल्कि राजस्थान को जल संकट से मुक्त करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
उन्होंने राठौड़ ने कहा कि यह परियोजना न केवल 1994 के यमुना जल समझौते के तहत राजस्थान के हिस्से के जल को सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयास है, बल्कि वर्षों से चली आ रही जल असमानता को दूर करने की दिशा में एक बड़ी पहल भी है। इससे लाखों लोगों को शुद्ध पेयजल मिलेगा, कृषि क्षेत्र को संबल मिलेगा, और ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में जीवन गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार होगा। यह परियोजना आने वाले वर्षों में राजस्थान को जल आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर सिद्ध होगी।